आज हमारे देश के एक प्रमुख नेता, असदुद्दीन ओवैसी साहब का जन्मदिन है। यह सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि उस आवाज़ का दिन है जिसने वर्षों से भारत के लोकतंत्र में एक विशिष्ट स्थान बनाया है। ओवैसी साहब की राजनीति, विचारधारा और बोलने के अंदाज़ को लेकर हमेशा चर्चा होती रही है, लेकिन बीते 15 दिनों में देश की जनता के नजरिए में एक अप्रत्याशित बदलाव देखने को मिला है।
जहाँ पहले ओवैसी साहब को एक सीमित वर्ग का प्रतिनिधि माना जाता था, वहीं आज उनके प्रति समर्थन की भावना व्यापक हो गई है। बीते कुछ हफ्तों में उन्होंने जो बयान दिए, जो रुख अपनाया और जो मजबूती से अपनी बात रखी, उसने उन्हें न सिर्फ एक राजनीतिक नेता बल्कि एक राष्ट्रवादी आवाज़ के रूप में प्रस्तुत किया है।
बदलता जनमत
हालिया घटनाओं में देश की सुरक्षा, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय सम्मान से जुड़ी कई बातों पर ओवैसी साहब ने खुलकर और साफ़गोई से अपनी राय रखी। उनका यह रवैया न सिर्फ उनके समर्थकों बल्कि उनके आलोचकों के बीच भी चर्चा का विषय बन गया। देश की 80% आबादी का नजरिया उनके प्रति बदलना एक छोटी बात नहीं है। इसका कारण सिर्फ बयानबाज़ी नहीं, बल्कि समय और परिस्थिति की नब्ज़ को समझकर बोलना और देशहित को प्राथमिकता देना है।
ओवैसी साहब ने बार-बार यह दोहराया कि भारत का संविधान सर्वोच्च है, और इस देश की विविधता ही इसकी सबसे बड़ी ताकत है। उन्होंने बताया कि किसी भी मसले पर भले ही मतभेद हों, लेकिन देश की अखंडता और सम्मान से कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
बेबाकी और समझदारी की मिसाल
आज जब कई नेता कूटनीतिक भाषा और बचाव की राजनीति अपनाते हैं, ओवैसी साहब ने खुलकर कहा:
“हमारे आंतरिक मसले हैं, उन पर हम आपस में लड़ेंगे भी और बहस भी करेंगे। मगर अगर किसी और ने हमारे देश की तरफ आँख भी उठाई, तो उसे मिट्टी में मिला देंगे।”
इस बयान ने लोगों के मन में एक मजबूत भाव जगाया। यह सिर्फ शब्द नहीं थे, बल्कि एक नेता की उस भावना का प्रतिबिंब थे जो अपने देश के लिए पूरी तरह समर्पित है। इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर लाखों लोगों ने उनकी तारीफ़ की, और एक नई पहचान उनके नाम के साथ जुड़ गई — ‘बेबाक देशभक्त’।
आलोचना से सराहना तक का सफर
असदुद्दीन ओवैसी साहब का सफर आसान नहीं रहा। उन्होंने हमेशा अल्पसंख्यकों के मुद्दों को उठाया है, जिसके चलते उन्हें बार-बार ‘ध्रुवीकरण की राजनीति’ करने का आरोप झेलना पड़ा। लेकिन समय के साथ उन्होंने यह साबित किया कि वे सिर्फ एक समुदाय की नहीं, बल्कि पूरे देश की बात करते हैं।
उनकी यह छवि पिछले दो हफ्तों में और स्पष्ट हुई, जब उन्होंने सीमाओं की सुरक्षा, पाकिस्तान के हस्तक्षेप और वैश्विक मंचों पर भारत की स्थिति को लेकर खुलकर राष्ट्रवादी रुख अपनाया।
उन्होंने यह भी कहा कि:
“हमें किसी विदेशी समर्थन की ज़रूरत नहीं। हमारे मसले हमारे हैं, और हम ही उन्हें सुलझाएंगे।”
यह भावना आज के युवाओं को, खासकर उस वर्ग को जो पहले राजनीति से दूर था, गहराई से छू रही है।
क्यों बदल रही है सोच?
इस बदलाव के पीछे कई कारण हैं:
- स्पष्टता: ओवैसी साहब की बातों में अस्पष्टता नहीं होती। वह जो सोचते हैं, वही बोलते हैं।
- संविधान पर भरोसा: उन्होंने हमेशा भारतीय संविधान को सर्वोपरि माना है।
- निडरता: वो किसी भी विषय पर बिना डरे बात करते हैं, चाहे वो कितना ही संवेदनशील क्यों न हो।
- राष्ट्रीयता: हालिया बयानों में राष्ट्रप्रेम और देशभक्ति स्पष्ट दिखी।
निष्कर्ष
असदुद्दीन ओवैसी साहब का यह जन्मदिन एक ऐसे समय में आया है, जब उनके प्रति देश का नजरिया तेजी से बदल रहा है। वह अब केवल एक क्षेत्रीय या धार्मिक नेता नहीं रह गए हैं, बल्कि उन्होंने खुद को एक सशक्त, तार्किक और राष्ट्रवादी नेता के रूप में स्थापित किया है।
उनकी यह नई छवि बताती है कि यदि एक नेता सच्चे मन से देश के हित में बोले और डटे, तो जनता भी उसे दिल से अपनाती है।
TruthNama की ओर से असदुद्दीन ओवैसी साहब को जन्मदिन की शुभकामनाएं।
हम आशा करते हैं कि वह इसी तरह लोकतंत्र की ताकत बने रहें और देशहित में आवाज़ उठाते रहें।