भारत में किसानों का आंदोलन कोई नया मुद्दा नहीं है, लेकिन 2020-21 के ऐतिहासिक आंदोलन ने राजनीति की दिशा ही बदल दी थी। अब एक बार फिर 2024-25 में किसान संगठन नए सिरे से सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं। इस बार मुद्दा है न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी, कर्जमाफी, बिजली बिल, और पुराने समझौते पूरे न होने को लेकर।
इस लेख में हम जानेंगे कि मौजूदा किसान आंदोलन का क्या राजनीतिक असर पड़ रहा है, इसमें कौन-कौन शामिल हैं, सरकार की क्या रणनीति है, और यह चुनावी राजनीति को कैसे प्रभावित कर रहा है।
🔥 आंदोलन की पृष्ठभूमि
2020-21 के दौरान जब केंद्र सरकार ने तीन कृषि कानून लाए, तब पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर पूरे देश में किसान सड़कों पर उतर आए। दिल्ली की सीमाओं पर एक साल से अधिक चले इस आंदोलन ने सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कानून वापस लेने की घोषणा करनी पड़ी।
लेकिन किसानों का भरोसा पूरी तरह बहाल नहीं हुआ। अब 2025 की शुरुआत में एक बार फिर किसान संगठन दिल्ली कूच की तैयारी कर रहे हैं।
🎯 मौजूदा मांगें क्या हैं?
-
MSP पर कानून की गारंटी: किसानों का कहना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून नहीं बना तो फसल का सही दाम नहीं मिलेगा।
-
कर्जमाफी: छोटे किसानों की आत्महत्याएं बढ़ रही हैं।
-
बिजली बिल 2023 का विरोध: किसानों को डर है कि सब्सिडी खत्म की जा सकती है।
-
2021 में हुए वादों को लागू करना: MSP कमेटी, फसल बीमा में सुधार, प्रदर्शनकारियों पर केस वापसी आदि।
🔎 कौन हैं आंदोलन के नेता?
-
राकेश टिकैत (भारतीय किसान यूनियन – BKU): पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुख्य चेहरे।
-
बलबीर सिंह राजेवाल (संयुक्त किसान मोर्चा – SKM): पंजाब के लोकप्रिय किसान नेता।
-
जोगिंदर सिंह उगराहां: पंजाब और हरियाणा में बड़ा प्रभाव।
संयुक्त किसान मोर्चा एक बार फिर सक्रिय हो गया है और उन्होंने सभी राज्यों में किसान पंचायतें शुरू कर दी हैं।
🧠 सरकार की प्रतिक्रिया
सरकार ने अभी तक कोई नया कानून लाने का संकेत नहीं दिया है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि “सरकार बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन आंदोलन की राजनीति सही तरीका नहीं।”
इसके जवाब में किसान नेता कहते हैं कि “बातचीत तब होगी जब मांगें मानी जाएं, न कि केवल सुनवाई हो।”
बीजेपी को डर है कि आंदोलन फिर से 2025 के चुनावों को प्रभावित कर सकता है, खासकर उत्तर भारत में।
🗳️ चुनावों पर असर
1. पंजाब और हरियाणा:
यह दो राज्य किसान आंदोलनों का केंद्र रहे हैं। कांग्रेस और AAP इन इलाकों में किसानों के समर्थन में दिख रही हैं।
-
AAP ने पंजाब में फ्री बिजली और MSP लागू करने का वादा किया।
-
कांग्रेस किसान आंदोलन को “जनांदोलन” बताकर भाजपा पर निशाना साध रही है।
2. उत्तर प्रदेश और राजस्थान:
टिकैत जैसे नेता भाजपा को ग्रामीण इलाकों में चुनौती दे रहे हैं। किसान वोट बैंक काफी अहम हो गया है।
-
जाट, गुर्जर और ओबीसी किसान वर्ग बीजेपी से नाराज़ दिख रहा है।
-
समाजवादी पार्टी और RLD इसका लाभ उठाने की कोशिश में हैं।
3. महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश:
यहां भी आंदोलन की लहर महसूस की जा रही है। स्वाभिमानी शेतकरी संगठन और अन्य संगठन आंदोलन में जुड़ रहे हैं।
📱 सोशल मीडिया पर प्रभाव
#MSP_कानून_चाहिए और #किसान_आंदोलन फिर से Twitter (अब X), Instagram और YouTube पर ट्रेंड कर रहे हैं।
-
युवाओं में जागरूकता बढ़ी है
-
कई सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर्स और यूट्यूब चैनल किसान मुद्दों को सपोर्ट कर रहे हैं
-
Reels और Shorts के जरिए आंदोलन तेजी से डिजिटल हो रहा है
⚖️ विपक्ष की भूमिका
विपक्ष इस आंदोलन को “मोदी सरकार के असली चेहरे को उजागर करने का मौका” मान रहा है।
-
कांग्रेस, सपा, AAP, TMC सभी MSP कानून की गारंटी की मांग कर रहे हैं
-
INDIA गठबंधन ने आंदोलन को “जनता की आवाज़” बताया
राहुल गांधी, अखिलेश यादव, और ममता बनर्जी जैसे नेता किसानों से मिलने पहुंचे हैं या समर्थन का ऐलान कर चुके हैं।
📊 क्या यह आंदोलन वोट में बदल सकता है?
यह सवाल सबसे बड़ा है। किसानों की संख्या बड़ी है, लेकिन क्या वह एकजुट होकर वोट करेंगे?
-
2021 में आंदोलन के बाद BJP को कई उपचुनावों में झटका लगा था
-
लेकिन लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे हावी हो जाते हैं
-
अगर आंदोलन लंबे समय तक चला और शांति से रहा, तो वोटों में असर हो सकता है
❗संभावित भविष्य
-
अगर MSP कानून नहीं लाया गया: आंदोलन तेज़ होगा, और भाजपा को उत्तर भारत में नुकसान हो सकता है
-
अगर सरकार कोई समझौता करती है: BJP फिर से “किसान हितैषी” पार्टी की छवि बना सकती है
-
अगर आंदोलन हिंसक होता है: सरकार इसे राष्ट्रविरोधी या साजिश बता सकती है, जिससे आंदोलन की धार कमजोर पड़ सकती है
निष्कर्ष:
किसान आंदोलन सिर्फ खेती-किसानी का मुद्दा नहीं रह गया है, यह अब भारत की राजनीति की दिशा तय करने वाला आंदोलन बन गया है। चाहे MSP की मांग हो या किसानों का सम्मान, इस आंदोलन ने फिर से सरकार, मीडिया और जनता का ध्यान खींचा है।
2025 के चुनाव नज़दीक हैं, और अब यह साफ होता जा रहा है कि भारत की असली लड़ाई खेतों से शुरू होकर संसद तक जाएगी।
TruthNama.com आपके लिए किसान आंदोलन की हर खबर, विश्लेषण और राजनीति से जुड़ी हर हलचल सबसे पहले लाता रहेगा।